Monday 27 June 2016

तेरा ख़याल - मेरी नज़्म

मैं सोचते थी लिखने से शायद गम कम हो जाएगा
पर आज भी अपनी लिखी हर नज़्म को पढ़ के तेरा ख़याल आता है

और वो ख़याल इतना वाज़ेह है कि लगता है
जिन यादो को यादो के पटल से मिटाना चाहते थे
शब्दो मे ढाल के उन्हे अमर कर दिया है

फिर कैसे भूल जाउ तुम्हारी हर याद को
ओ बेवफा! क्यू तमाम उम्र मैने तुम्हारे लिए लिखा था!

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