कभी कभी नींद भी अजीब खेल खेलती है
जब जानती है उसकी ज़्यादा ज़रूरत है तो आँखो से ओझल हो जाती है|
और मैं यहाँ बेठा हूं तेरी महफ़िल में
तेरी राह मे बेठे बेठे तेरी उलफत और बढ़ जाती है|
तुम कहते तो कुछ भी कर जाते तुम्हारे लिए,
पर तुम्हे क्या लगा, ऐसे मुंह फेर लेने से क्या चाहत मर जाती है?
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