Sunday 6 November 2016

पूछ लो...


अपनी परछाइयों से आज पूछ लो 
ये जिस्म की क्या सच्चाई है
कल दफ़्न है जिसने होना 
उससे क्यूँ तूने नीयत लगायी है 

आइने में दिखते उस अक्स से पूछ लो
इस ख़ूबसूरती की क्या क़ीमत लगायी है
आज तुझे पाना है जिसे 
कल हिजाब में वही सूरत छुपाई है

नींद में बड़बड़ाते उन वादों से पूछ लो
यहाँ सच बोलने की मनाही है 
ना खेलो इतना भी ना मुझसे
तुझे बस खुदाई की दुहाई है ।


क्यूँ...

इक सन्नाटा सा है चारों और 
इक आग सी लगी है 
क्यूँ बेरुख़ी सी है हवाओ में
रहम की फ़रियाद सी लगी है 

क्यूँ आता है कोई 
मंज़िलों को छोड़ के 
क्यूँ किसी की रास्तों में
आवाज़ ही नहीं है 

क्यूँ लिखता है कोई
हज़ारों गीत इश्क़ में
क्यूँ किसी के लिए
अल्फ़ाज़ की कमी है

क्यूँ कोई जी गया
तेरी यादों के सहारे से
क्यूँ कैफ़-ए-जावेदाँ में
बस मौत की कमी है ।

Saturday 5 November 2016

झूठी थी...

वो तेरे इश्क़ के फरमान झूठे थे
वो बेवफ़ाई के इनकार झूठे थे
वो दुनिया को सुनाए फसाने  झूठे थे
वो बीत गये जो रोते-हस्ते वो ज़माने झूठे थे

वो कहते हैं कि इश्क़ की रूह मे सच्ची इबाब्दात है
जो सबसे उपर महबूब को रखे, वही सच्ची मोहब्बत है
पर तेरे लिए मुझसे बढ़ कर तेरी खुदाई थी
तुझे उसके लिए मंज़ूर मेरी जुदाई थी

वो तेरे इश्क़ का रूप झूठा था
मेरे आने से दिखता तेरे चेहरे का नूर झूठा था
वो तेरे इश्क़ का जुनून झूठा था
वो सुकून झूठा था

वो इश्क़ की आतिज़्बाज़ी मे
हम झूम-२ के कहते थे
बस रूप तेरा हे सच्चा है
बस इश्क़ तेरा हे सच्चा है
वो तेरे इश्क़ मे दिखती रहनूमाई झूठी थी
वो तेरी सच्चाई झूठी थी
और मेरा इश्क़ भी तेरा अक्स-ए-मोहब्बत था
तो मेरे इश्क़ की सच्चाई
क्या वो भी झूठी थी...??