Friday 20 March 2015

समाज!

क्यू आसान है
उन सभी के बारे मे बाते करना
जो अब नही है
उनके किए हुए कामो पर
और उनके चरित्र पर
कीचड़ उछालना
क्या सच्चाई की भूख
इतनी ज़रूरी है?
सच्चाई जानना ज़रूरी तो है
पर क्या मूल्य चुकाना होगा हमे
और इस समाज को
अपनी मान्यताओ और कल्पनाओ
की हवस को शांत करने के लिए
जो बढ़ रही है
दिन पे दिन
जिन पर कोई लगाम नही है
बेरोक टोक आगे बढ़ रही हैं
समाज का गंदा चेहरा
सामने लाने के लिए
कहाँ रुकेगा ये
कहाँ थामेगा ये?

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