Saturday 21 March 2015

दीदार

वो झरोखा
और झरोखे से तेरे दीदार
वो दरख़्त
जिसके साए में तुम खड़े थे
उस खुशनुमा-ए-रात में
और उन झरोखो के पर्दो को थामे
खड़ी मैं
तेरा दीदार करते हुए
और जानते हुए
कि तेरा दीदार भी तो
खुदा की इनायत है मुझ पर
ना जाने फिर कब होगा
पर इन अश्को ने कर दिया हो जैसे बयान
उस चाहत का
जो हैं.....
तेरे रूबरू होने की चाह में
रास्ता बिच्छाए तेरे इंतेज़ार में!

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