Monday 12 September 2016

तेरी दीवानगी

तेरे एहसास में ऐसे जी लेते हैं
तू हो या ना हो
तेरे इश्क़ का नशा चख लेते हैं 
तू ना आए मेरे पास 
तो तेरी यादों को खींच लाते हैं 
यूँ तो तुझे देखे बिना दिन नही कटते
तेरा दीदार ना हो जब महीनो से 
तेरी तस्वीर ही देख के
अपनी आँखें भींच लेते हैं 

कभी इस ज़ुनून-ए-इश्क़ को
अपनी आदत बना लेते हैं 
तो कभी अपने ग़म को 
काग़ज़ पे उतार लेते हैं 
क्या ख़ूब है ये शायरी भी 
तेरी दीवानगी हो या तन्हाई-ए-इश्क़ 
हर हाल में इसी का साथ माँग लेते हैं 

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