तू हो या ना हो
तेरे इश्क़ का नशा चख लेते हैं
तू ना आए मेरे पास
तो तेरी यादों को खींच लाते हैं
यूँ तो तुझे देखे बिना दिन नही कटते
तेरा दीदार ना हो जब महीनो से
तेरी तस्वीर ही देख के
अपनी आँखें भींच लेते हैं
कभी इस ज़ुनून-ए-इश्क़ को
अपनी आदत बना लेते हैं
तो कभी अपने ग़म को
काग़ज़ पे उतार लेते हैं
क्या ख़ूब है ये शायरी भी
तेरी दीवानगी हो या तन्हाई-ए-इश्क़
हर हाल में इसी का साथ माँग लेते हैं
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