Thursday 1 September 2016

दर्द में भी अपना एक मज़ा है

दर्द में भी अपना एक मज़ा है
बेठे बेठे दीवार को ताकना
ख़ुद के बालों में ऊँगली फिराना
और वो सभी कुछ करना जो बेवजह है
दर्द में भी अपना एक मज़ा है

कभी सोचते हुए आँखें छलक जाना 
कभी उन्ही यादों पर बेफ़िक्र मुस्कुराना 
क्या इस में उस ऊपर वाले की रज़ा है
दर्द में भी अपना एक मज़ा है

यूँ बार बार उन पुराने ख़तों को पढ़ना
यूँ तेरे साथ होते तो, ऐसे क़िस्से गढ़ना
क्या मेरा बेइंतहान इश्क़ ही मेरी सज़ा है 
दर्द में भी अपना एक मज़ा है




1 comment:

  1. Zehaal-e-miskin makun taghaful, duraye naina banaye batiyaan
    ke taab-e-hijraan nadaram-e-jaan, na leho kahe lagaye chhatiyaan

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