बेठे बेठे दीवार को ताकना
ख़ुद के बालों में ऊँगली फिराना
और वो सभी कुछ करना जो बेवजह है
दर्द में भी अपना एक मज़ा है
कभी सोचते हुए आँखें छलक जाना
कभी उन्ही यादों पर बेफ़िक्र मुस्कुराना
क्या इस में उस ऊपर वाले की रज़ा है
दर्द में भी अपना एक मज़ा है
यूँ बार बार उन पुराने ख़तों को पढ़ना
यूँ तेरे साथ होते तो, ऐसे क़िस्से गढ़ना
क्या मेरा बेइंतहान इश्क़ ही मेरी सज़ा है
दर्द में भी अपना एक मज़ा है
Zehaal-e-miskin makun taghaful, duraye naina banaye batiyaan
ReplyDeleteke taab-e-hijraan nadaram-e-jaan, na leho kahe lagaye chhatiyaan