कभी जलते हैं इश्क़ में
कभी ठंडी छांव में रहते हैं
कभी मरते हैं घुट घुट के
और कभी
जी लिया करते हैं
कभी आते है दर पे तेरे
कभी चुप चाप निकल जाते हैं
कभी माँगते हैं तुझे दुआओ में
कभी अल्लाह पे छोड़ दिया करते हैं
कभी मरते हैं तेरी याद में
पर अक्सर
जी लिया करते हैं
कभी माँगते हैं तुझे ख़ुद से
कभी अल्लाह से दुआ करते हैं
कभी कहते हैं यक़ीन है अपने इश्क़ पे
और काफ़िर हुआ करते हैं
कभी मरते हैं इन ख़्वाहिशों के बोझ से
और कभी
जी लिया करते हैं
कभी पाते हैं तुम्हें ख़्वाबों में
तो कभी खुलीं आँखों से देख लेते हैं
तेरे ज़िक्र भी आए ज़हन में
तो अपने अंदर समेत लेते हैं
कभी तेरी याद में ऐसे आहें लेते हैं
कि मर ही जायें
पर अक्सर
जी लिया करते हैं
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