Thursday 8 September 2016

जी लिया करते हैं


कभी जलते हैं इश्क़ में 
कभी ठंडी छांव में रहते हैं
कभी मरते हैं घुट घुट के 
और कभी 
जी लिया करते हैं 

कभी आते है दर पे तेरे 
कभी चुप चाप निकल जाते हैं 
कभी माँगते हैं तुझे दुआओ में 
कभी अल्लाह पे छोड़ दिया करते हैं 
कभी मरते हैं तेरी याद में 
पर अक्सर 
जी लिया करते हैं 

कभी माँगते हैं तुझे ख़ुद से
कभी अल्लाह से दुआ करते हैं 
कभी कहते हैं यक़ीन है अपने इश्क़ पे 
और काफ़िर हुआ करते हैं 
कभी मरते हैं इन ख़्वाहिशों के बोझ से 
और कभी 
जी लिया करते हैं 

कभी पाते हैं तुम्हें ख़्वाबों में 
तो कभी खुलीं आँखों से देख लेते हैं 
तेरे ज़िक्र भी आए ज़हन में
तो अपने अंदर समेत लेते हैं 
कभी तेरी याद में ऐसे आहें लेते हैं 
कि मर ही जायें
पर अक्सर 
जी लिया करते हैं 

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