अपनी क़लम को अपने ख़ून से भरते रहे
तूने कहा मैं जानता नही
हम तेरे इंतज़ार में घड़ियाँ गिनते रहे
पर आज जो मैं सच जान गयी
ये क़लम रुक गयी
स्याही जैसे ख़त्म हो गयी
ख़ून जैसे सूख सा गया
लफ़्ज़ जैसे थम से गए
तू जो नहीं है तो
ज़िंदगी में ख़ालीपन तो है
पर अब साँस लेने का दम है
अब तेरी यादों के बिना
अकेले नहीं अपने साथ "हम" हैं!
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