Thursday 7 July 2016

अपने साथ हम हैं

तेरी जुदाई में जाने क्या क्या लिखते रहे 
अपनी क़लम को अपने ख़ून से भरते रहे 
तूने कहा मैं जानता नही 
हम तेरे इंतज़ार में घड़ियाँ गिनते रहे 

पर आज जो मैं सच जान गयी 
ये क़लम रुक गयी 
स्याही जैसे ख़त्म हो गयी 
ख़ून जैसे सूख सा गया 
लफ़्ज़ जैसे थम से गए 

तू जो नहीं है तो 
ज़िंदगी में ख़ालीपन तो है 
पर अब साँस लेने का दम है 
अब तेरी यादों के बिना 
अकेले नहीं अपने साथ "हम" हैं! 

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