Sunday 3 July 2016

एक शाम शायरी के नाम

अरसलान अहमद -
Ijazat ho agar Teri to fir ik baat main poochu...
Jo mjhse ishq seekha tha WO Ab tum kisse kartey ho...

प्रज्ञा जैन -
उसके अंदर
वो मुझे भी सिखा गया 
बस एक जवाब देदो 
जो मुझमें इतना प्यार जगाया 
उसका क्या करूँ
अरसलान अहमद -
बहोत अंदर तक तबाही मचा देता है,
वो एक अश्क़ जो बह नहीं पाता।।
प्रज्ञा जैन -
अश्क़ भी बहायें बहुत हैं तेरे लिए 
पर इस बार दिल पे ऐसी चोट लगी है 
की अशको का मरहम भी काफ़ी नही

अरसलान अहमद -
Bahut din se in aankhon ko yahi samjha raha hun main...
Ye duniya hai yahan to ik tamasha roz hota hai.....!!

प्रज्ञा जैन - 
उन हज़ारों तमाशों में एक तमाशा हमारा भी 
बच गए कि तेरी याद में बस जनाज़ा नही उठा

अरसलान अहमद - 
Wo Bewafa Hi Sahi, Us Pe Tohmatein Kaisi?
Zara Si Baat Pe Itna Fasaad Kya Karna?

प्रज्ञा जैन -
बात तो बड़ी है 
शायद उनके लिए आसान हो 
मेरी बात और है मैंने तो मोहब्बत की है। 

~एक बेहतरीन शायर अरसलान के साथ लिखे कुछ शेर 

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