Monday 30 May 2016

बाग़ ए आलम

आज बाग़ ए आलम में 
चिड़ियों का बसेरा है
जहाँ तुमने रखे थे कभी क़दम
वहाँ एक अलग हे सवेरा है

आज बाग़ ए आलम में
इक सन्नाटा सा छाया है
जहाँ तुम आते जाते थे
वहाँ तेरा वजूद भी ना पाया है

आज बाग़ ए आलम में
कुछ टूटी सी इमारतें हैं
जहाँ ख़ुशबू ए गुलाब हवा में महकती हैं
वही हम अपनी शामें गुज़ारते हैं ।।

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