Sunday 29 May 2016

हर बरसात...

ना देखा तुमने 
ना छुआ 
ना साथ में भीगे 
उस बारिश में
पर फिर भी क्यूँ
हर बरसात तेरी याद ले आती है 
जैसे ये बारिश की हरेक बूँद
जब मुझे छूतीं हैं 
वो तेरा ही तो एहसास है
वो जो एक नशा है
पागलपन सा है 
इस बरसात में
वो तेरा ही नशा है
जैसे तू ही कही नाच रहा हो
इस बारिश में 
और मुझे भी खींच रहा हो
हर बार जैसे यही लगता है 
हर बरसात तेरी याद ले आती है 
हर बरसात 

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