Wednesday 30 July 2014

विचलित मन

क्यों ये मन इतना उदास है
अशांत है विचलित है

क्या ये प्रेम की अनुपस्थिति है
या बस मेरी मनोस्थिति है
क्या यह अविश्वास है विश्वास पे
या स्वयं पे

क्या ये उन उमीदों के स्व्प्ने हैं
जो पूरे ना हों सकें
या उनके फड़फड़ाते पंख हैं
जो जानते नहीं की जाना कहां है

क्या ये भूत के लिये उदास हैं
वर्तमान के लिये अशांत और
भविष्य के लिये विचलित है
क्यों ये मन इतना उदास है
अशांत है विचलित है

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