इंतजार है कब से तेरा
पलकें बिछये बेठे हैं
इन हवाओं में तेरे गीत हैँ
नदी वृक्ष मनमीत हैं
पलकें बिछये बेठे हैं
इन हवाओं में तेरे गीत हैँ
नदी वृक्ष मनमीत हैं
पहाड़ो की उस चोटी पे
जहाँ भाग कर जाते थे
सूरज को ढलते देख कर
आलिंगन हम भरते थे
जहाँ भाग कर जाते थे
सूरज को ढलते देख कर
आलिंगन हम भरते थे
नदिया के पानी में जब हम
कणकण फैन्का करते थे
आगे आने वाले कल के
सपने देखा करते थे
कणकण फैन्का करते थे
आगे आने वाले कल के
सपने देखा करते थे
पर अब तुम बस मेरे सपनों का हिस्सा हो
कल थे हकिकत मेरी आज बस इक किस्सा हो
कल थे हकिकत मेरी आज बस इक किस्सा हो
आओ इस जीवन में अब तुम
कर दो मुझको अब जीवंत
विरह ना अब मैं सह पाऊंगी
कर दूँगी इसका मैं अंत।
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