वृक्ष के इन परिन्दो को कह गय़ा है कोई
आत्मा की शान्ति हेतु इस ध्वनि में खोई
हृदय के स्मृति पटल पर
तुम ही छाये रात भर
इस को देखे इस को सुनते
कट जाये ये उमर
आज खुश हूँ तृप्त हूँ मैं
और मदमस्त है ये पवन
पक्षियों की मधुर ध्वनि में
हो गयी हूँ मैं मगन
जाओ मन तुम उड़ भी आओ
दूर आसमां के परे
जहाँ ना हो कोई बन्दिश
और किसी से ना हो भय
full of thought...
ReplyDeleteThanks Jagdish :)
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