Saturday 19 July 2014

आसमां के परे

वृक्ष के इन परिन्दो को कह गय़ा है कोई
आत्मा की शान्ति हेतु इस ध्वनि में खोई

हृदय के स्मृति पटल पर
तुम ही छाये रात भर
इस को देखे इस को सुनते
कट जाये ये उमर

आज खुश हूँ तृप्त हूँ मैं
और मदमस्त है ये पवन
पक्षियों की मधुर ध्वनि में
हो गयी हूँ मैं मगन

जाओ मन तुम उड़ भी आओ
दूर आसमां के परे
जहाँ ना हो कोई बन्दिश
और किसी से ना हो भय

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