Friday 1 August 2014

सागर

सागर गहरा है विशाल है
जल से परिपूर्ण है
पर क्या यह तृप्त है
संतुष्ट है?

फैला है चहु दिशाओ में
किया है स्पर्श इस धरती को
नादिया भी आती है
दौड़ती भागती
धरती का कोनो को छुते हुए
सागर से मिलने

किन्तु सागर अचल है
मिलता है नादिया से
दिखता शांत है..पर क्या सच में?
क्या अंदर इक तूफान है?

हे सागर क्या है तेरी गहराईयो में
उन अंधेरो में
ना जाने वहाँ जीवन है या नही
या है सूनेपन का सन्नाटा

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