तो भी तो ज़िंदगी
चलती थी
फिर पता नहीं क्यूँ
तेरे जाने से
ज़िंदगी रुक सी गयी
जब तू नहीं था
तब भी तो हँसते
थे फ़ूल
अब ना जाने क्यूँ
तेरे जाने से
बाग़ीचा सूना सूना सा है
जब तू नहीं था
तब भी तो चल रहे थे हम
अब ना जाने क्यूँ
तेरे जाने से
ये क़दम ठहरे से हैं
जब तू नहीं था
तब भी तो लिख रहे थे हम
अब तेरे जाने के बाद
इन पंक्तियो में
दर्द सा क्यूँ हैं?
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