Tuesday 14 October 2014

आशा

आशाओ से परे वो आसमाँ होगा
जहा सपनो का संसार होगा
जहा दोपहर के बाद शाम का समाँ होगा
जहा अपना ईमान अपना खुदा होगा

जब धरती के आँचल से कोपले फूटेंगी
जब नादिया समंदर से अपना रिश्ता गूँथेगी
जब सच्चाई और ईमानदारी पे संसार चले
जब हर चीज़ का आधार प्यार बने

जहाँ किसान और व्यापारी में कोई फ़र्क ना हो
जहाँ अधर्मियो का बोल बाला ना हो
ऐसे ही संसार की आशा रखते हैं हम
हटे सब अहंकार और सारे गम

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