Monday 6 October 2014

उपकार

उन जख्मों को अब सेहला भी दो
कि जिनमे मलहम लगा नही
उन अश्को को पौंछ भी दो
कि जिनमें तेरा नशा सही

क्या है उस आसमां की गेहराई में
कि जहाँ फँसा है ये जीवन
क्या है उस स्वप्न लोक की परछाई में
जहाँ सुनी थी वो गर्जन

मुक्त करो अब इस बंधन से
जो कभी पूर्ण संसार था
जीवन का तूने अर्थ समझाया
सच यही तेरा उपकार था

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