जैसे आज मन थम ही नहीं रहा
जाना चाहता है उन गलियों में
उन किताबों के पन्ने पलट रहा है
जब खुशबू है उन सूखी कलियों में
जैसे चल रहा हो उन राहो में
जहाँ का रास्ता वो भूल चुका है
जैसे वक़्त फिर चल पड़ेगा
जहाँ वो कबसे रुका है
उन सूखे दरख्तो को
आस से देखता हूँ मैं आज
जानें कब उनमें फूल खिल उठें
जानें कब ख़ोल दें वो इक नया राज़
No comments:
Post a Comment