जिनके अपने घर काँच के होते हैं
वो जानते हैं की दुनिया कितनी नाज़ुक है
भागते हैं वो ईंटों के घरों की तरफ़
की शायद वहाँ स्थाईत्व मिल जाये
पर वो नही जानते
की घर नही उनके दिल बन चुके हैं काँच के
इतने कमज़ोर की एक कंकण भी हिला दे
तोड़ दे उन दीवारो को जिन्हे वो मज़बूत समझते हैं
सोचते हैं वो
कि क्या जी पायेंगे इस काँच के साथ
दीवारो और दिलों मे
बसा पायेंगे अपनी उस दुनियाँ को
जो शायद सिर्फ सपनों क हिस्सा है
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