Thursday 18 September 2014

काँच

जिनके अपने घर काँच के होते हैं
वो जानते हैं की दुनिया कितनी नाज़ुक है
भागते हैं वो ईंटों के घरों की तरफ़
की शायद वहाँ स्थाईत्व मिल जाये

पर वो नही जानते
की घर नही उनके दिल बन चुके हैं काँच के
इतने कमज़ोर की एक कंकण भी हिला दे
तोड़ दे उन दीवारो को जिन्हे वो मज़बूत समझते हैं

सोचते हैं वो
कि क्या जी पायेंगे इस काँच के साथ
दीवारो और दिलों मे
बसा पायेंगे अपनी उस दुनियाँ को
जो शायद सिर्फ सपनों क हिस्सा है

No comments:

Post a Comment