Monday 4 August 2014

प्रेम

उस कठोर चेहरे के पीछे
हृदय तुम्हारा देखा है
प्रेम भरा है इतना उसमें
जिसकी ना कोइ सीमा है

सागर से इस मुख के पीछे
ये कैसा तूफ़ान है
अंदर लेहरें उठती चढती
बाहर लगता शांत हैं

आओ ना बतलाओ मुझको
कैसी ये परछाई में
क्या है ये अंतर मे तेरे
कैसी ये तन्हाई है

जानू ना मैं कैसे तेरा
प्यार असीम पाया है
पुलकित हूँ इस प्रेम तरंग में
तू ही तू बस छाया है

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