Sunday 10 April 2016

उम्मीद

उन सावन के फूलो पे भी
उन पतझड़ के फूलो पे भी
तेरा ही नाम लिखा था
भेजे थे वो ख़त 
बे-इंतहाँ प्यार के साथ
सोचा था समझोगे
दिल का हाल
समझोगे चाहत को
उन अनकहे शब्दों को 
उस तलब को
उस बेचैनी के आलम को....
आया मेरे ख़तों का जवाब 
उसी हाँ ना और कैसे हो में
ढूँढतीं रही मैं 
जाने किधर दो शब्द और मिल जाएँ
और उस इंतज़ार में
जाने कब मैंने ख़त लिखने छोड़ दिए
और जाने कब तुमने जवाब देने 
अब तो हम बेठे हैं
उन मुलाक़ातों की कल्पना करते हुए 
जो कल हुई थीं
जो शायद कल हो जाएँ
यादों का जीवन
खोने का जीवन
रोने का जीवन
पश्चात्ताप का जीवन
उम्मीद का जीवन
कल्पनाओं का जीवन

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