वक़्त ठहरा रहा
और हम भी रुकते से चलते से
उसके इंतज़ार में
कही वो क़ाफ़िला गुज़रा
तो हमने पलट के देखा
सोचा दो घड़ी निहार लें
वो तो चला ही जाएगा
खेलता, नाचता, खिलखिलाता
एक बालक की तरह
उड़ता हुआ सा
और दो पल में ग़ायब
और फिर समय रुक सा गया
फिर यादें सन्न सीं
फिर लम्हा बीता सा
फिर तनहाइया पुकारती सीं।
No comments:
Post a Comment