Sunday, 11 October 2015

तनहाइया

उसके दीदार में जैसे सदियाँ बीत गयी 
वक़्त ठहरा रहा
और हम भी रुकते से चलते से
उसके इंतज़ार में
कही वो क़ाफ़िला गुज़रा
तो हमने पलट के देखा
सोचा दो घड़ी निहार लें
वो तो चला ही जाएगा
खेलता, नाचता, खिलखिलाता 
एक बालक की तरह
उड़ता हुआ सा
और दो पल में ग़ायब
और फिर समय रुक सा गया
फिर यादें सन्न सीं
फिर लम्हा बीता सा
फिर तनहाइया पुकारती सीं।

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